सोमवार, 24 जून 2013

दुर्योधन के मरने के बाद युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण को क्यों भेजा हस्तिनापुर?


उसके बाद सभी पांडव व  वीर जब दुर्योधन की छावनी में घुसकर खजाना, रत्नों की ढेरी व भंडार घर पर अधिकार कर लिया। चांदी, सोना, मोती, मणि अच्छे-अच्छे आभूषण बढिय़ा कंबल, मृगचर्म और राज्य के बहुत सारे सामान वहां से हाथ लगे। उस समय आपके अक्षय धन का भंडार पाकर पांडव खुशी के मारे उछल पड़े।

श्रीकृष्ण कहा-आज की रात में हम लोगों को अपने मंगल के लिए छावनी के बाहर रहना चाहिए। बहुत अच्छा कहकर पांडव श्रीकृष्ण और सात्यकि के साथ छावनी से बाहर निकल गए। उन्होंने परम पवित्र ओघवती नदी के किनारे वह रात बिताई। उस समय राजा युधिष्ठिर ने  कर्तव्य विचार करके कहा- माधव एक बार क्रोध से भरी हुई गांधारी देवी को शांत करने के लिए आपको हस्तिनापुर जाना चाहिए यही उचित जान पड़ता है। धर्मराज युधिष्ठिर की बात सुनकर श्रीकृष्ण गांधारी के पास गए। जन्मजेय ने पूछा- धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण को गांधारी के पास क्यों भेजा? जब पहले वे संधि कराने के लिए कौरवों के पास गए थे, उस समय तो उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई।

उन्होंने ही युद्ध करने पर पांडवों को मजबूर किया तो फिर भगवान श्रीकृष्ण को गांधारी को शांत करने क्यों जाना पड़ा? ये सुनकर वैशम्पायनजी ने कहा- राजा तुमने जो प्रश्न किया है वह बिल्कुल सही है। मैं इसका यार्थाथ कारण बताता हूं सुनो। भीमसेन ने गदायुद्ध के नियम का उल्लंघन करके दुर्योधन को मारा यह देखकर महाराज युधिष्ठिर को बड़ा भय हुआ। उन्हें यही लगा कि अपने पुत्र की अन्याय पूर्वक वध की बात सुनकर कहीं वे अपने मन से अग्रि प्रकट कर हमें भस्म न कर डालें इसीलिए उन्होंने श्रीकृष्ण को हस्तिनापुर भेजा।

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