बुधवार, 14 अगस्त 2013

क्यों बनाया गया था द्रोणाचार्य को कौरवों का सेनापति?


क्यों बनाया गया था द्रोणाचार्य को कौरवों का सेनापति?

जब रात बीती और सवेरा हुआ तो सभी पाण्डव और कौरव भीष्मजी के नजदीक पहुंचे। सभी ने वीरों की तरह बाणों पर सोए हुए भीष्मजी को प्रणाम किया। हजारों कन्याओं ने वहां आकर उनकी पूजा की। सभी श्रेणी के लोग उनके दर्शन के लिए आने लगे। बाणों के घावों से भीष्मजी का शरीर जल रहा था। भीष्मजी ने कर्ण को बुलवाया और कहा कि कर्ण तुम सूत पुत्र नहीं तुम कुंती पुत्र हो। तब कर्ण ने कहा- यह मुझे भी मालूम है। लेकिन जैसे श्रीकृष्ण पाण्डवों की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। ठीक उसी तरह में अपने जीवन के अंत तक युद्ध में कौरवों का साथ दूंगा।

भीष्म ने ये बात सुनकर कहा यदि तुम्हारे मन से पांडवों के लिए वैर नहीं मिट सकता तो मैं तुम्हे उनसे युद्ध करने की आज्ञा देता हूं। भीष्मजी से युद्ध की आज्ञा प्राप्त करने के बाद कर्ण युद्ध के लिए तैयार हो गए। कर्ण और दुर्योधन के बीच आपस में बातचीत हुई और उन्होंने द्रोणाचार्य को सेनापति बनाने का निर्णय लिया। दुर्योधन ने द्रोणाचार्य से कहा कि आप वर्ण, कुल, उत्पति, विद्या, आयु और तपस्या में सबसे श्रेष्ठ हैं। आप हमारे सेनापति बन जाएंगे तो इस युद्ध में निश्चित ही हमारी जीत हो जाएंगी। तब द्रोणाचार्य ने सेनापति बनना स्वीकार किया और उनका सेनापति पद पर अभिषेक किया गया।

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