बुधवार, 14 अगस्त 2013

महाभारत के युद्ध से पहले कुछ ऐसा था कुरुक्षेत्र का माहौल...


महाभारत के युद्ध से पहले कुछ ऐसा था कुरुक्षेत्र का माहौल...

सब सैनिक दौड़-धूप करने लगे। युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। यह शब्द गूंजने लगे। हाथी, घोड़े और रथों का घोष होने लगा। चारो ओर शंख और दुन्दुभि की  ध्वनि फैल गई। सेना के आगे-आगे भीमसेन, नकुल, सहदेव अभिमन्यु, द्रोपदी के पुत्र, धृष्टद्युम्न आदि सभी चले। राजा युधिष्ठिर माल की गाडिय़ों, बाजार के सामानों, डेरे-तम्बू और पालकी आदि सवारियों, कोशों, मशीनों, वैद्यों एवं अस्त्रचिकित्सकों को लेकर चले। धर्मराज को विदा करे पांचालकुमारी द्रोपदी और अन्य राजमहिलाएं अपने शिविर को लौट आई।

इस तरह युद्ध की व्यापक तैयारी कर पाण्डवलोग परकोटों और पहरेदारों से अपने धन-स्त्री आदि की रक्षा का प्रबंध कर गौ और सोने आदि का दान करके विशाल मणजडि़त रथों में बैठकर कुरुक्षेत्र की ओर चले। वहां पहुंचकर एक ओर से श्रीकृष्ण और दूसरी ओर से अर्जुन शंख की ध्वनि करने लगे। राजा युधिष्ठिर ने एक चौरस र्मैदान में, जहां घास और ईधन की अधिकता थी, अपनी सेना का पड़ाव डाला। श्मशान, महर्षियों के आश्रम, तीर्थ और देवमंदिरों से दूर रहकर उन्होंने पवित्र और रमणीय भूमि में अपनी सेना को ठहराया।

वहां पाण्डवों के लिए जिस प्रकार का शिविर बनवाया गया था। ठीक वैसे ही डेरे श्रीकृष्ण ने अन्य लोगों के लिए भी बनवाए। उन सभी डेरों में सैकड़ों प्रकार की भक्ष्य, भोज्य और पेय सामग्रियां थी। ईधन आदि की भी अधिकता थी। वे राजाओं के डेरे विमानों के सामन थे। उनमें कवच धारण किए, हजारों योद्धाओं के साथ युद्ध करने वाले अनेकों हाथी पर्वतों की तरह खड़े दिखाई देते थे। वैद्यलोग वेतन देकर नियुक्त किए गए थे। पाण्डवों को कुरुक्षेत्र में आया सुनकर उनसे मित्रता का भाव रखनेवाले अनेकों राजा सेना और सवारियों के साथ उनके पास आने लगे।

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