बुधवार, 14 अगस्त 2013

जब अर्जुन ने युधिष्ठिर पर तलवार उठाई तो श्रीकृष्ण ने क्या किया?


जब अर्जुन ने युधिष्ठिर पर तलवार उठाई तो श्रीकृष्ण ने क्या किया?

यह सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा धिक्कार है!धिक्कार है!!! फिर अर्जुन से बोले पार्थ आज मुझे मालूम हुआ कि तुमने कभी वृद्ध पुरुषों की सेवा नहीं की है। तभी तो बिना मतलब ही इतना क्रोध आ गया। यहां तुमने जो धर्मभीरुता और अज्ञानता का काम किया है। वह तुम्हारे योग्य काम नहीं है। जो खुद धर्म का आचरण करके शिष्यों द्वारा उपासना किया जाने पर उन्हें धर्म का उपदेश देते हैं। धर्म के संक्षेप और विस्तार से जानने वाले उन गुरुजनों का इस विषय में क्या निर्णय है। इसे तुम नहीं जानते। 

उस निर्णय को नहीं जानने वाला मनुष्य कर्तव्य व अकर्तव्य के निश्चय में तुम्हारी ही तरह असमर्थ और मोहित हो जाता है क्या करना चाहिए क्या नहीं? इसे जान लेना सहज नहीं है। इसका ज्ञान होता है शास्त्र का तुम्हे पता ही नहीं है। तुम अज्ञानवश जो खुद को धर्म का ज्ञाता मानकर जो तुम धर्म की रक्षा करने चले हो। उसमें जीवहिंसा का पाप है-यह बात तुम्हारे जैसे धार्मिक की समझ में नहीं आती। मेरे विचार से प्राणियों की हिंसा न करना ही सबसे बड़ा धर्म है।  किसी की प्राणरक्षा के लिए झूठ बोलना पड़े तो बोल दें लेकिन हिंसा न होने दें।भला तुम्हारे जैसा धर्मज्ञ अपने बड़े भाई और चक्रवर्ती राजा को मारने के लिए कैसे तैयार हो गया। जो युद्ध न करता हो, शत्रुता न रखता हो, रण से विमुख होकर भागा जा रहा हो, शरण में आता हो, हाथ जोड़कर खड़ा हो या असावधान हो तुम्हारे भाई में ये सभी गुण हैं। तुमने नासमझ बालक की तरह पहले ही प्रतिज्ञा कर ली। इसलिए मुर्खतावश अधर्म कार्य करने को तैयार हो गए। बताओ तो भला तुम बिना सोचे विचारे अपने बड़े भाई का वध करने कैसे दौड़ पड़े। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें