बुधवार, 14 अगस्त 2013

भीष्म ने क्यों किया स्वयंवर से राजकुमारियों का हरण?


भीष्म ने क्यों किया स्वयंवर से राजकुमारियों का हरण?

भीष्मजी से दुर्योधन ने पूछा- दादाजी शिखण्डी अगर रणक्षेत्र में बाण चढ़ाकर आपके सामने आएगा तो आप उसका वध क्यों नहीं करोगे। भीष्मजी बोले- दुर्योधन शिखण्डी को रणभूमि में अपने सामने भी जो मैं नहीं मारूंगा, उसका कारण सुनो। जब मेरे पिता शान्तनुजी स्वर्गवासी हुए तो मैंने अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए चित्रागंद से राजसिहांसन पर अभिषिकक्त हुआ। जब उसकी मृत्यु भी हो गई तो माता सत्यवती की सलाह से मैंने विचित्रवीर्य को राजा बनाया। विचित्रवीर्य की आयु बहुत छोटी थी।

इसलिए राजकार्य में उसे मेरी सहायता की अपेक्षा रहती थी। फिर मुझे किसी कुल के अनुरूप कन्या के साथ उसका विवाह करने की चिंता हुई। इसी समय मैंने सुना कि कशिराज की अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का नाम की तीन अनुपम रूपवती कन्याओं का स्वयंवर होने वाला है। उसमें पृथ्वी के सभी राजाओं को बुलाया गया था। मैं भी अकेला ही रथ में चढ़कर कशिराज की राजधानी में पहुंचा। वहां यह नियम किया गया था कि जो सबसे पराक्रमी होगा, उसे ये कन्याएं विवाही जाएंगी।

मुझे जब यह मालूम हुआ तो मैंने तीनों कन्याओं को अपने रथ में बैठा दिया। वहां आए राजाओं को बार-बार सुना दिया गया कि महाराज शंातनु के पुत्र भीष्म कन्याओं को ले जा रहा है। आप लोग पूरा-पूरा बल लगाकर इन्हें छुड़ाने का प्रयत्न करें। तब वे सब राजा अस्त्र-शस्त्र लेकर मेरे ऊपर टूट पड़े। मैंने सको परास्त कर दिया। मेरी बाण चलाने की फूर्ती देखकर उनके मुंह पीछे फिर गए और वे मैदान छोड़कर भाग गए। इस तरह सब राजाओं को जीतकर मैं हस्तिनापुर चल दिया। वे तीनों कन्याएं माता सत्यवती को सौंप दी।

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