बुधवार, 31 अगस्त 2016

महाभारत विजय पर भी युधिष्ठिर का शोक

सब लोग भागीरथी नदी के तट पर पहुंचे। वहां उन्होंने अपने आभूषण और दुपट्टे उतार दिए। फिर कुरुकुल की स्त्रियों ने बहुत दुखित होकर रोते-रोते अपने पुत्र और पतियों को जलांजलि दी और धर्मविधि को जानने वाले पुरुषों ने भी जलदान किया। जिस समय वे वीरपत्नियां जलदान कर रही थी। शोकाकुल कुंती ने रोते-रोते धीरे स्वर में कहा पुत्रों जिसे अर्जुन ने संग्राम में परास्त किया है जो वीरों के सभी लक्षणों से सम्पन्न था। जिसे तुम राधा की कोख से उत्पन्न सूतपुत्र मानते हो, जिसने दुर्योधन की सारी सेना को नियंत्रण किया था। पराक्रम में जिसके समान पृथ्वी में कोई भी राजा नहीं था। जो दिव्य कवच और कुंडल धारण किए हुए था।

वह कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था। उसके लिए तुम जलांजली दे दी। माता के ये अप्रिय वचन सुनकर सभी पाण्डव कर्ण के लिए शोकाकुल होकर उदास हो गए। फिर राजा युधिष्ठिर ने लंबी-लंबी सांसे लेते हुए माता से पूछा- माताजी कर्ण तो साक्षात समुद्र के समान गंभीर थे। उन्होंने किस प्रकार देवपुत्र होकर भी तुम्हारे गर्भ से जन्म लिया था। तुमने कैसे इस रहस्य को छुपा दिया। आज कर्ण की मृत्यु से हम सभी भाइयों को बहुत दुख हुआ है। इस तरह कहते हैं बहुत विलाप करके धर्मराज युधिष्ठिर रोते-रोते कर्ण को जलांजलि दी। उस समय वहां सहसा सभी स्त्रियां रो पड़ी।

सभी योद्धाओं को तिलांजली देने के बाद पाण्डव, विदुर, धृतराष्ट्र और भरवंश की सभी स्त्रियां आत्मशुद्धि के लिए एक मास तक गंगा के तट पर रहे। सबसे पहले नारदजी ने व्यास आदि मुनियों से वार्तालाप करके राजा युधिष्ठिर के बारे में इस तरह कहा- राजन् आप अपने बाहुबल और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से इस संपूर्ण पृथ्वी पर धर्मपूर्वक विजय पाई है। सौभाग्य की बात है कि आप इस भयंकर संग्राम से जीते-जागते बच गए। अब आप प्रसन्न तो हैं ना राज्यलक्ष्मी पाकर कोई शोक तो नहीं सताता आपको युधिष्ठिर ने कहा भगवान श्रीकृष्ण के आश्रय व ब्राह्मणों की कृपा और भीम व अर्जुन के बल से मैंने संपूर्ण पृथ्वी पर विजय पा ली है।

लेकिन मेरे दिल में यह एक महान दुख बना रहता है कि मैंने लोभवश अपने वंश का संहार करवा दिया। मैंने विजय तो पा ली लेकिन मैं प्रसन्न नहीं हूं। सुभद्राकुमार अभिमन्यु व द्रोपदी के प्यारे पुत्रों को मरवाकर अब यह विजय भी पराजय सी ही जान पड़ती है। द्रोपदी सदा हमलोगों का प्रिय और हित करने में लगी रहती है, इस बेचारी के पुत्र और भाई सब मारे गए। जब इसकी ओर देखता हूं तो बड़ा कष्ट होता है। जिनमें दस हाथियों का बल था। संसार में जिनकी समानता करने वाला कोई भी महारथी नहीं था। जो बुद्धिमान, दाता, दयालु और वृत का पालन करने वाले थे वे कर्ण भी युद्ध में मारे गए। वे माता कुंती के ज्येष्ठ पुत्र थे उन्हें हमने ही मरवा डाला। 

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