बुधवार, 31 अगस्त 2016

दुर्योधन और कर्ण की मित्रता

जीवन मित्रों के बिना अधूरा है। महाभारत काल में यदि मित्रता का प्रसंग हो और दुर्योधन और कर्ण की मित्रता की बात न हो ऐसा कभी नहीं हो सकता। कर्ण-दुर्योधन की मित्रता का परिचय हमें इस घटना से मिलता है जब श्रीकृष्ण संधि दूत बनकर हस्तिनापुर गए थे तो लौटते समय उन्होंने कर्ण को अपने रथ पर बैठाकर बताया कि वे सूतपुत्र नहीं बल्कि कुंती पुत्र हैं और कहा कि यदि तुम पांडवों की ओर से युद्ध करोगे तो राज्य तुम्हें ही मिलेगा। कर्ण ने इस बात पर जो कहा वह उनकी दोस्ती की सच्ची मिसाल है। उन्होने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पांडवों के पक्ष में श्रीकृष्ण आप हैं  तो विजय तो पांडवों की निश्चय ही है। परंतु दुर्योधन ने मुझको आज तक बहुत मान-सम्मान से अपने राज्य में रखा है तथा मेरे भरोसे ही वह युद्ध में खड़ा है। ऐसी संकट की स्थिति में यदि मैं उसे छोड़ता हूं तो यह अन्याय होगा। तथा मित्र धर्म के विरुद्ध होगा। श्रीकृष्ण अर्जुन के परम सखा थे।

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