बुधवार, 31 अगस्त 2016

महाभारत

महाभारत का नाम सुनते ही मस्तिष्क में भयंकर संहारक युद्ध का नजारा आंखों के सामने घूमने लगता है। अधिकतर लोग समझते हैं कि महाभारत एक युद्धकथा है, जिसमें राज्य के लिए पांडवों और कौरवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। किंतु अगर बारिकी से देखा जाए तो महाभारत में श्रेष्ठ जीवन के कई सूत्र छिपे हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में कैसे जीया जाए। यह कथा एक संपूर्ण जीवन शैली है। महाभारत की रचना महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास (वेद व्यास) ने की है। महाभारत के विषय में कहा जाता है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों के विषय में जो महाभारत में कहा गया है वह ही सब ओर है, और जो इसमें नहीं है वह कहीं नहीं है।इसे पांचवा वेद भी कहते हैं। महाभारत का नाम जय, भारत और उसके बाद महाभारत हुआ। इसमें एक लाख श्लोक हैं।यह बहुनायक प्रधान ग्रंथ है। जिसे किसी भी पात्र के दृष्टिकोण से देखा जाए वही नायक प्रतीत होता है। महाभारत के एक लाख श्लोकों को अठारह खंडों (पर्वों) में विभाजित किया हुआ है। इन पर्वों का नाम रखा गया है- आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शांति, अनुशासन, अश्वमेद्य, आश्रमवाती, मौसल, महाप्रस्थानिक तथा अंतिम स्वर्गारोहण पर्व है।



एक श्लोक में महाभारत पाठ

महाभारत ऐसा दिव्य ग्रंथ है, जिसमें मानवीय जीवन के संघर्ष में विजय पाने के वह सभी सूत्र है, जिनकी अज्ञानता में कोई व्यक्ति प्रतिकूल स्थितियों तनावग्रस्त और बैचेन रहकर जीवन का अनमोल समय गंवा देता है।

आदौ देवकीदेवी गर्भजननं गोपीगृहे वर्द्धनम् ।
मायापूतन जीविताप हरणम् गोवर्धनोद्धरणम् ।।
कंसच्छेदन कौरवादि हननं कुंतीतनुजावनम् ।
एतद् भागवतम् पुराणकथनम् श्रीकृष्णलीलामृतम् ।।

भावार्थ यह है कि मथुरा में राजा कंस के बंदीगृह में भगवान विष्णु का भगवान श्रीकृष्ण के रुप में माता देवकी के गर्भ से अवतार हुआ। देवलीला से पिता वसुदेव ने उन्हें गोकुल पहुंचाया। कंस ने मृत्यु भय से श्रीकृष्ण को मारने के लिए पूतना राक्षसी को भेजा। भगवान श्रीकृष्ण ने उसका अंत कर दिया। यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के दंभ को चूर कर गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊं गली पर उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की। बाद में मथुरा आकर भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का वध कर दिया। कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरव वंश का नाश हुआ। पाण्डवों की रक्षा की। भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता के माध्यम से कर्म का संदेश जगत को दिया। अंत में प्रभास क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण का लीला संवरण हुआ।



महाभारत का सबसे बड़ा संदेश है कर्म
महाभारत कई मायनों में धर्म प्रधान होते हुए भी कर्म प्रधान ही है। स्वयं श्रीकृष्ण भी कर्म की प्रधानता अर्जुन को गीता उपदेश के समय समझाते हुए कहते है कि कर्म करो फल की चिंता मत करो।अर्जुन युद्ध के मैदान में जब अपने ही परिजनों को समक्ष देखकर घबरा जाते हैं तब श्रीकृष्ण उन्हें कहते हैं कि एक तरफ तो आप यह कहते हैं कि ये मेरे भाई-बंधु है, मुझे इनसे युद्ध नहीं करना चाहिए और मेरे बड़ों पर मैं अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाऊंगा तथा दूसरी तरफ तुम हे अर्जुन, जिन लोगों के विषय में नहीं सोचना चाहिए उनके विषय में तू सोचता है और ज्ञानियों की तरह बातें करते हो।



चिकित्सा का आश्चर्य भी है महाभारत में

महाभारत केवल एक धर्म शास्त्र या कोई युद्ध कथा नहीं है। यह भारतीय जीवन शैली का प्रामाणिक लेख है। नीति और धर्म की शिक्षा का सबसे बड़ा ग्रंथ है। जीवन का सार जो भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध के पहले अजरुन को दिया था, वह भी इसी ग्रंथ का एक हिस्सा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि महाभारत में चिकित्सा क्षेत्र का वह चमत्कार भी है, जिस पर अब लगभग सारे ही देशों में काम चल रहा है। वह है टेस्ट टच्यूब बेबी का। क्या आप जानते हैं हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों लाखों साल पहले ऐसे चमत्कार कर दिखाए हैं जो अब भी कई जगह आश्चर्य का विषय माने जाते हैं। दुनिया के हर कोने में टेस्ट टच्यूब बेबी द्वारा बच्चों के प्रजनन पर प्रयोग चल रहे हैं। महाभारत में यह प्रयोग हजारों वर्ष पहले ही सफलता पूर्वक किया जा चुका है। महाभारत के रचियता और इस कथा के मुख्य पात्र महर्षि वेद व्यास ने यह प्रयोग किया था। वे चिकित्सा पद्धति के विख्यात विद्वान भी रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि महर्षि वेद व्यास ने दुर्योधन और उसके 99 भाइयों और एक बहन को इसी पद्धति से पैदा किया था। महाभारत में कथा आती है कि दुर्योधन की माता गांधारी को महर्षि वेद व्यास ने ही सौ पुत्र होने का वरदान दिया था। गांधारी जब गर्भवती हुईं तो दो साल तक गर्भस्थ शिशु बाहर नहीं आया। वह लोहे के एक गोले जैसा सख्त हो गया। गांधारी ने लोकापवाद के भय से इस गोले को फेंकने का निर्णय लिया। जब वह इसे फेंकने जा रही थी तभी वेद व्यास आ गए और उन्होंने उस लोहे के गोले के सौ छोटे-छोटे टुकड़े किए और उन्हें सौ अलग-अलग मटकियों में कुछ रसायनों के साथ रख दिया। एक टुकड़ा और बच गया था, जिससे दुर्योधन की बहन दुशाला का जन्म हुआ। इस तरह एक सौ एक मटकियों में सभी कौरवों का जन्म हुआ। महर्षि वेद व्यास ने ऐसे ही कई और चमत्कारिक प्रयोग किए हैं।


जीवन का महाभारत हमें लड़ऩा भी है और जीतना भी

एक महाभारत वो था जो कुरुक्षेत्र की भूमि पर लड़ा गया था। जिसमें एक और अन्याय और अधर्म थे तो दूसरी तरफ न्याय और धर्म। जिधर धर्म था, उधर भगवान थे और जिस ओर स्वयं भगवान हों वहां जीत तो सुनिश्चित ही थी। ऐसा ही एक महाभारत दुनिया के हरेक इंसान को लडऩा होता है। जबसे इंसान को यह शरीर मिला है, जबसे वह पैदा हुआ है, तभी से संघर्ष .... संघर्ष.... संघर्ष ।

ऐसा ही हम सभी के जीवन का कुरुक्षेत्र भी है। जैसे ही बच्चा पैदा होता है पहले रोता है। तो रोने से शुरू होती है उसके संघर्षों की कहानी। आज ये करूंगा, कल वो करूंगा। मतलब कर्म के बगैर आदमी रह नहीं सकता। जब तक शरीर है एक क्षण भी हम बिना कर्म के रह नहीं सकते। मन भी कहता रहता है ये करूंगा वो करूंगा। तो जब तक जीवन है तब तक कर्म करना ही होता है,लेकिन मूल बात है कुशलता पूर्वक कर्म करना। बिना कर्म के तो रहना मुश्किल है और कर्म से छूटना मुश्किल है। लेकिन कर्म के बंधन से छूटना मुश्किल नहीं है, यह युक्ति गीता के तीसरे अध्याय 'कर्मयोग' में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं।

महाभारत के विश्वविख्यात युद्ध के लिये स्वयं श्री कृष्ण द्वारा जगह का चयन किया गया। कुरुक्षेत्र के विशाल मेदान में दोनों ओर सेनाएं हैं, रथ हैं, रथ में अर्जुन बैठे हैं और कृष्ण सारथी के रूप में रथ के अश्वों की बागडोर अपने हाथ में लिए चला रहे हैं। थोड़ा समझें, यह केवल ऐतिहासिक घटना मात्र नहीं है, इसमें एक दर्शन है। जीवन स्वयं में कुरुक्षेत्र है। हमारे जीवन में कभी-कभी ऐसे पल आते हैं जब हम किंकर्तव्यविमूढ़ होकर खड़े हो जाते हैं, अर्जुन की तरह। क्या करना चाहिए, क्या नहीं, हमारी समझ में नहीं आता। अपना कर्तव्य क्या है? अपना धर्म क्या है? गीता के द्वारा भगवान हमें याद दिलाते हैं कि-हमारा कर्तव्य क्या है? लक्ष्य क्या है? और इस लक्ष्य को सफलतापूर्वक हम कैसे प्राप्त कर सकते हैं।

आइये महाभारत को संक्षेप में जानने का प्रयास करते हैं । श्री महाभारत कथा 




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें