बुधवार, 31 अगस्त 2016

राज्य मिल जाने पर युधिष्ठिर ने किया वनवास का फैसला

राज्य मिल जाने पर युधिष्ठिर ने किया वनवास  का फैसला

यह बोलकर युधिष्ठिर ने कहा अर्जुन थोड़ी देर तक मन को एकाग्र करके मेरी बात सुनों और उस पर विचार करो।  मैं तो सांसारिक सुखों को लात मारकर अवश्य ही वन में जाऊंगा वहां कंद-मूल खाकर तपस्या करूंगा। सुबह और शाम को स्नान करके अग्रि में आहूति डालूंगा। शरीर पर मृगछाला और वल्कलवस्त्र धारण कर मस्तक पर जटा रखूंगा। सर्दी-गर्मी, हवा और भूख प्यास व कष्ट को सहन करूंगा। शरीर को सुखा डालूंगा।

एकान्त में रहकर तत्व पर विचार करूंगा। कच्चा व पक्का जैसा भी फल मिले उसी खाकर जीवन का निर्वाह करूंगा। इस प्रकार वनवासी मुनियों के कठोर से कठोर नियमों का पालन करके इस शरीर की आयु समाप्त होने के बाद देखता रहूंगा। मुनि-वृति से रहता हुआ। मस्तक मुड़ां लूंगा और एक-एक दिन एक-एक वृक्ष से भिक्षा मांगकर देह को दुर्बल कर लूंगा। इस प्रकार वनवासियों के कठोर नियमों का पालन करेंगे। इस शरीर की आयु समाप्त होने का इंतजार करता रहूंगा। प्रिय व अप्रिय का विचार छोड़कर पेड़ के नीचे रहूंगा। किसी के लिए न शोक करूंगा न हर्ष। बुराई और अच्छाई को समान समझूंगा।  कभी किसी वस्तु का संग्रह नहीं करूंगा।

यह सुनकर भीमसेन बोले जब आपने राजधर्म की निंदा कर आलस्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने का ही निश्चय कर रखा था तो बेचारे कौरवों का नाश कराने से क्या लाभ था?आपका यह विचार अगर पहले मालूम होता तो हम हथियार नहीं उठाते, न किसी का वध करते।आप ही की तरह शरीर को त्यागने का संकल्प लेकर हम भी भीख ही मांगते। ऐसा करने से राजाओं यह भयंकर संग्राम तो नहीं होता। यह धर्म बताया गया है कि वे राज्य पर अधिकार जमावें और उसके बीच में अगर कोई रूकावट डाले तो उसे मार डालें। दुष्ट कौरव हमने उनका वध किया है। अब आप धर्मपूर्वक इस पृथ्वी का उपभोग कीजिए। अन्यथा सारा प्रयत्न व्यर्थ चला जाएगा। जैसे कोई मनुष्य मन में किसी तरह की आशा करता है और मंजिल तक पहुंचकर उसे वहां उसे निराश होना पड़ता है। कोई भी बुद्धिमान पुरुष इस मौके को त्याग करने की प्रशंसा नहीं करेगा।

जो अतिथियों को भोजन देने की शक्ति नही रखता है। वही जंगल में जाकर रहने का निर्णय लेता है। सभी भाइयों को इस तरह परेशान देखकर द्रोपदी कहती है। महाराज- आपके ये भाई आपका संकल्प सुनकर सुख गए हैं। पपीहे की तरह रट लगा रहे हैं। फिर भी आप अपनी बातों से इन्हें प्रसन्न कर रहे हैं।  जब हमने सालों तक वनवास व्यतीत किया तब दुख के समय आप अपने भाइयों से कहते थे कि एक बार कौरवों को हराने के बाद हम संपूर्ण पृथ्वी का सुख भोगेंगे। तब आपने ऐसी बातें करके हौसला बढ़ाया तो अब क्यों हम लोगों का दिल तोड़ रहे हैं। जो अवसर देखकर क्षमा भी करता है, क्रोध भी करता है, शरणागतों को निर्णय भी करता है। वह राजा धर्मात्मा कहलाता है।

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