बुधवार, 31 अगस्त 2016

भीष्म


महाभारत एक बहुनायक प्रधान रचना है। इस कथा में कई नायक हैं, जिनके जीवन पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं। हर पात्र का एक विशेष गुण है और वह हमें इसी का संदेश भी देता है। महाभारत का पहला ऐसा पात्र है भीष्म। भीष्म पितामह जैसी निष्ठा महाभारत के अन्य पात्रों में कम ही दिखाई देती है।



पितामह भीष्म का नाम देवव्रत था उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य की जो भीष्म प्रतिज्ञा की इस कारण उनका नाम भीष्म पढ़ गया। हस्तिनापुर राज्य के राजा का पद अस्वीकार कर दो पीढिय़ों के बाद उन्हीं की मौजूदगी में हुए भीषण नरसंहारकारी महायुद्ध के वे दृष्टा बने। उन्हें यह ज्ञात होने पर भी कि कौरवों ने अधर्म और छल से पांडवों को राज्य से हटा दिया फिर भी वे निष्ठा पूर्वक कौरवों का साथ निभाते रहें। जबकि हृदय से तो वे पांडवों के साथ ही थे। भीष्म की ही निष्ठता का प्रमाण है कि उन जैसे वीर ने दस दिन तक लगातार युद्ध कर पांडवों की सेना को समाप्त कर ही रहे हैं किंतु कृष्ण के द्वारा अर्जुन को भीष्म के पास भेजे जाने पर उन्होंने स्वयं अपनी ही पराजय का गुप्त राज अर्जुन को बताया था। यह सत्य के प्रति उनकी निष्ठा थी।हमें भीष्म जैसे व्यक्तियों से जो कि नि:संतान होते हुए भी पितामह कहलाए जिनका श्राद्ध आज भी हर सनातन धर्म का अनुयायी करता है।हमें भी उनके जीवन के आदर्शों को अपने जीवन में उतारकर जीवन को विभिन्न आनंदों के साथ जीना चाहिए। जीवन में बहुत सी घटनाएं हमें हमारी प्रतिज्ञाओं से अलग हटा देती है। भीष्म पर भी कई बार दुविधा के क्षण आए किंतु वे अपनी प्रतिज्ञा से हटे नहीं।

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