रविवार, 25 नवंबर 2012

वेदों से ही सारे ग्रंथों की रचना


वेद मानव जीवन की प्रगति के प्रमाण तो हैं ही, मोक्ष का मार्ग बताने वाले ग्रंथ भी हैं।तीनों प्रमुख वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद) मुक्ति के तीन मार्ग बताते हैं।उनके मंत्रों में भक्ति, कर्म और ज्ञान की बातें हैं। भारतीय मनीषियों का मानना है कि जीवन में मुक्ति यानी मोक्ष के लिए केवल तीन ही मार्ग हैं कर्म, उपासना और ज्ञान। ये तीनों मार्ग ही आदमी को मोक्ष की ओर ले जाते हैं। मोक्ष का मतलब स्वर्ग-नर्क से नहीं है, यह तो उस अवस्था का नाम है जब मनुष्य कर्मों के बंधन से मुक्त होकर जन्म के फेर से छूट जाता है। तीन वेद, इन तीन मार्गों के प्रतीक हैं। ऋग्वेद में ज्ञान, यजुर्वेद में कर्म (कर्मकांड) और सामवेद उपासना का ग्रंथ है। तीनों ही मार्ग मोक्ष की ओर जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि वेदों में एक लाख मंत्र हैं, उनमें से करीब अस्सी हजार कर्मकांड के, सोलह हजार उपासना के और शेष चार हजार मंत्र ज्ञान से जुड़े हैं। विद्वान मानते हैं कि ज्ञान ही मोक्ष का सबसे श्रेष्ठ मार्ग है। इन वेदों की शाखाओं के विलुप्त होने से ही मंत्र कम रह गए और अब ये काफी संक्षिप्त रूप में हमारे सामने हैं। अब ये एक लाख मंत्र उपलब्ध नहीं है। इन वेदों के सहायक ग्रंथों में इनके प्रमाण मिलते हैं। चौथेवेद, अथर्ववेद में सभी अपराशक्तियों (आलौकिक शक्तियों) के प्रमाण हैं, जैसे जादू, चमात्कार, आयुर्वेद और यज्ञ।

चार वेद : चार ग्रंथ, चार पुरुषार्थ, चार देव, चार तत्व

वेद केवल धर्म की किताबें भर नहीं है। इनके पीछे छिपा दर्शन बहुत गहरा और जीवन के अर्थों को समेटे हुए है। ये केवल मंत्रों से भरे ग्रंथ नहीं हैं। संपूर्ण मानव जीवन का सार इनमें है। 

मानव जीवन में चार प्रमुख पुरुषार्थ हैं अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष। चारों वेद इन चार पुरुषार्थों का प्रतीक हैं। इन चार वेदों के चार प्रमुख देवता हैं अग्रि, वायु, सूर्य और सोम (चंद्र)। ऋग्वेद के देवता अग्रि को माना जाता है, यजुर्वेद के देवता पवन यानी वायु, सामवेद के देवता सूर्य और अथर्ववेद के देवता सोम माने गए हैं। ये चारों देवता और चारों वेद इन चार पुरुषार्थों के प्रतीक हैं। 

ऋग्वेद : चार पुरुषार्थों में पहला अर्थ है, शास्त्रों का मानना है कि गृहस्थ का सबसे पहला धर्म है, जीवनयापन के लिए आवश्यक साधन जुटाए। ऋग्वेद अर्थ का ग्रंथ है जिसमें जीवन के लिए आवश्यक अनुशासन और ज्ञान की बातें हैं। अर्थ के लिए श्रम की जरूरी है और श्रम के लिए ऊर्जा यानी शक्ति। अग्रि ऊर्जा और शक्ति के प्रतीक हैं, इसलिए ऋग्वेद के प्रमुख देवता माने गए हैं। अर्थ के लिए परिश्रम करना होता है लेकिन यह परिश्रम भी अनुशासन के तहत हो, अधर्म के मार्ग से प्राप्त किया गया अर्थ पुरुषार्थ नहीं है। 

यजुर्वेद : यजुर्वेद काम का ग्रंथ है, यहां काम का अर्थ केवल विषय भोग से नहीं है। काम में कर्म, कामनाएं और मन तीनों शामिल है। यह कर्मकांड प्रमुख वेद है। इसमें यज्ञ का महत्व है, जो कर्म का प्रतीक भी है। यजुर्वेद के प्रमुख देवता वायु को माना गया है। वायु मन का प्रतीक है, मन वायु की तरह ही तेज चलता है और अस्थिर है। कर्म में श्रेष्ठता के लिए मन को साधना जरूरी है। मन को साधने से ही उसमें कामनाओं का लोप होता है। मन सद्कर्मों और शक्ति, धर्म के संचय में लगता है। कामनाओं का लोप होने के बाद ही हम किसी भी कार्य को एकाग्रता से कम सकते हैं। 

सामवेद : साम वेद उपासना का वेद है, धर्म का ग्रंथ है। धर्म के लिए भक्ति यानी उपासना का होना आवश्यक है। जब अर्थ और काम दोनों का साध लिया जाए यानी सांस्कृतिक और धार्मिक अनुशासन से इन्हें जीवन में उतारा जाए तब धर्म का प्रवेश होता है, जीवन में भक्ति आती है। भक्ति और ज्ञान प्रकाश के प्रतीक हैं, इसलिए सामवेद के देवता सूर्य माने गए हैं। जीवन में ज्ञान और भक्ति का बहुत महत्व है। इनको साधने से ही धर्म आता है।   

अथर्ववेद : यह ग्रंथ परमशक्तियों या पराशक्तियों का है। जब अर्थ, काम और धर्म तीनों जीवन में उतरते हैं तब मोक्ष का मार्ग खुलता है। मोक्ष कर्म और जन्म के फेर से मुक्ति है, यह मुक्ति ज्ञान से आती है, इसे ब्रह्म ज्ञान कहते हैं। अथर्ववेद ऐसे ही ज्ञान का वेद है। मुक्ति का ज्ञान हमें सारे संकटों से राहत देता है, यानी शीतलता देता है। इसलिए इस ग्रंथ के देवता चंद्र यानी सोम माने गए हैं, जो शीतलता देते हैं।

वेदों से ही सारे ग्रंथों की रचना हुई है। वेद - ग्रंथों के मूल विचार हैं, उनसे ही सारे ग्रंथों का विकास हुआ है। संहिता, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक और उपनिषद ये चारों वेदों के ही अंग है। इन्हें वेदांत भी कहा जाता है।दरअसल वेदों में आए विचारों और सूत्रों को आधार बनाकर विभिन्न विद्वानों और ऋषि-मुनियों ने ये ग्रंथ लिखें हैं।इनमें संहिताएँ और उपनिषदों की संख्या सबसे ज्यादा हैं। इन्हें विचारों की शुद्धि का ग्रंथ भी माना जाता है। भक्ति, ज्ञान की गूढ़ बातें इन वेदों में है, इन्हीं के आधार पर अन्य ग्रंथों की रचना मानी गई है।

हिंदू संस्कृति और सभ्यता को लेकर जितने भी सवाल उठाए जाते हैं,  समाजिक व्यवस्था, कर्मकांड और यज्ञों, आलौकिक शक्तियों पर उठने वाले सवालों जवाब इन वेदों में दिए गए हैं। भृगुसंहिता, गर्गसंहिता, पाराशरसंहिता जैसे ग्रंथ वेदों को आधार बना कर ही लिखे गए हैं। इसमें सामाजिक व्यवस्थाओं, जीवन की मर्यादाओं के साथ ही ज्ञान का भंडार है। उपनिषदों को वेदों का विस्तार माना गया है।

विद्वानों का कहना है कि वेदों की कई शाखाएँ थीं, जिनमें से अधिकतर अब अनुपलब्ध है। चार वेदों की करीब 1131 शाखाएँ थीं, जिनमें से अब मात्र 12 ही मिल पाई हैं।शेष शाखाएँ अब लगभग लुप्त हो गई हैं।इस कारण वेदों की कई विद्याएँ अब केवल कहानियों में ही हैं, जैसे यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद अब विलुप्त हो गया है।इस वेद में प्राचीन काल के महान अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान था जो उस काल में मिसाइल के समान थे।

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