रविवार, 25 नवंबर 2012

रामायण

रामायण जीवन मूल्यों और आदर्शों की कहानी है। भगवान राम के जीवनकाल पर आधारित यह कहानी हमें अमूल्य आदर्शों की शिक्षा देती है। राम के ही जीवन काल में उनके समकालीन ब्रह्मर्षि वाल्मीकि ने इस कथा की रचना की थी। यह कथा बताती है कि हमारे आदर्श कैसे हों। आदर्श पिता-माता, पत्नी, भ्राता, इतना ही नहीं महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामकथा में संपूर्ण भारतीय सभ्यता की प्रतिष्ठा गृहस्थाश्रम में स्थापित की है। यह संपूर्ण गृहस्थी और परिवार का ग्रंथ है। रामायण को आदिकाव्य तथा महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि की संज्ञा दी गई है। रामायण सात अध्यायों में है। इसके अध्यायों को कांड की संज्ञा दी गई है। इन कांडों के नाम बाल कांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुंदर कांड, युद्ध कांड और उत्तरकांड हैं। इसमें राम के जन्म से लेकर उनके महाप्रयाण तक की संपूर्ण कथा है।

इस रामकथा को सात कांडों में विभक्त किया गया है। इन सात कांडों में राम का संपूर्ण जीवन है। 1. बालकांड: इस कांड में वाल्मीकि को रामकथा के लिए ब्रह्मा की आज्ञा, दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ, राम जन्म, राम विवाह आदि।2. अयोध्या कांड: राम का वनगमन, चित्रकूट यात्रा, दशरथ मरण, भरत की चित्रकूट यात्रा, राम का चित्रकूट से प्रस्थान।3. अरण्यकांड: दण्डकारण्य प्रवेश, शूर्पणखा का विरूपीकरण, सीताहरण, जटायुवध, सीताखोज, शबरी प्रसंग।4. किष्किंधाकांड: सुग्रीव से मैत्री, बालिवध, वानरों का प्रेषण, वानरों की खोज।5. सुंदरकांड: लंका में हनुमान का प्रवेश, रावण-सीता संवाद, हनुमान-सीता संवाद, लंका दहन, हनुमान का प्रत्यावर्तन।6. युद्धकांड: लंका का अभियान, विभीषण की शरणागति, सेतुबंध, कुंभकरणवध, लंका दहन, रावण वध, अग्नि परीक्षा, अयोध्या प्रवेश।7. उत्तरकांड: सीता त्याग, अश्वमेद्य यज्ञ का आयोजन, स्वर्गगमन।यह जीवन के सिद्धांतों पर आधारित काव्य है। मानव जीवन बालू की भीत के समान शीघ्र ही ढहकर गिर जाने वाली वस्तु नहीं है। इसमें स्थायित्व है तथा आने वाली पीढिय़ों को राह दिखाने की क्षमता है।

रामायण की उत्पत्ति के विषय में एक घटना प्रसिद्ध है। इसमें 24 हजार श्लोक हैं। एक समय महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी पर स्नान करने गए। उसी समय एक व्याध ने काम से मोहित मिथुनभाव से स्वतंत्र विचरण करने वाले क्रौञ्च-क्रोञ्ची के जोड़े में से एक को मार दिया। क्रौञ्ची के उस करुण विलाप को सुनकर महर्षि वाल्मीकि का (शोक: श्लोकत्वं आगत:) शोक श्लोक के रूप में परिणित हो गया तथा उसी समय उन्होंने उस व्याध को शाप दिया कि- हे व्याध तूने काम से मोहित हो कौञ्च को मारा है। अत: तुम सदा के लिए प्रतिष्ठा को प्राप्त न करो।महर्षि की इस करुणामयी वाणी को सुनकर ब्रह्मा स्वयं उपस्थित हुए और उन्होंने उन्हें रामकथा पर आधारित काव्य लिखने के लिए प्रेरित किया। रामायण इसी प्रेरणा का फल है।

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