रविवार, 25 नवंबर 2012

यज्ञ

धर्मग्रंथों में यज्ञ की महिमा खूब गाई गई है। यज्ञ वेद का प्रमुख विषय है। क्योंकि यज्ञ एक ऐसा विज्ञानमय विधान है जिससे मनुष्य का भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से उत्कर्ष होता है।यज्ञ से भगवान प्रसन्न होते हैं, ऐसा धर्मग्रंथो में कहा गया है। ब्रह्म ने मनुष्य के साथ ही यज्ञ की भी रचना की और मनुष्य से कहा इस यज्ञ के द्वारा ही तुम्हारी उन्नति होगी। यज्ञ तुम्हारी इच्छित कामनाओं, आवश्यकताओं को पूर्ण करेगा। तुम यज्ञ के द्वारा देवताओं को पुष्ट करो, वे तुम्हारी उन्नति करेंगे।राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ कर चार पुत्र पाए। भगवान राम ने अश्वमेघ यज्ञ किया। भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा कसे पांडवों ने राजसूय यज्ञ कराया था। राजा नल ने यज्ञों के द्वारा स्वर्ग जाकर इंद्रासन को प्राप्त किया था। शोधार्थियों ने यज्ञ को अग्नि पूजा कहा है। ईरानी आर्य (पारसी) अग्नि की उपासना करते हैं। कर्मों के प्रायश्चित स्वरूप, अनिष्ट और प्रारब्धजन्य दुर्योगों की शांति के लिए, किसी अभाव की पूर्ति के लिए , कोई सुयोग या सौभाग्य प्राप्त करने के लिए, रोग-व्याधि, देवताओं को प्रसन्न करने हेतु, धन-धान्य की अधिक उपज के लिए, अमृतमयी वर्षा के लिये , वायुमंडल के शुद्धिकरण हेतु हवन किए जाते थे। साधनाओं में हवन अनिवार्य है। जितने भी जप, पाठ, पुनश्चरण किए जाते हैं, उनमें किसी न किसी रूप में हवन अवश्य करना पड़ता है। गायत्री उपासना में भी हवन आवश्यक है। गायत्री को माता और यज्ञ को पिता कहा गया है। इन्हीं के संयोग से मनुष्य का आध्यात्मिक जन्म होता है।

यजन, पूजन, सम्मिलित विचार, वस्तुओं का वितरण। बदले के कार्य, आहुति, बलि, चढ़ावा, अर्पण आदि के अर्थ में भी यह शब्द उपयोग होता है। यज्ञ, तप का ही एक रूप है। विशेष सिद्धियों या उद्देश्यों के लिए यज्ञ किए जाते हैं। चार वेदों में यजुर्वेद यज्ञ के मंत्रों से भरा है। इसके अलावा वेद आधारित अन्य शास्त्र, ब्राह्मण ग्रंथों और श्रोत सूत्रों में यज्ञ विधि का बहुत विस्तार से वर्णन हुआ है। वैदिक कालिन कार्यों एवं विधानों में यज्ञ का प्रधान धार्मिक कार्य माना गया है।वैज्ञानिक विद्या: यह इस संसार तथा स्वर्ग दोनों में दृश्य तथा अदृश्य पर, चेतन तथा अचेतन वस्तुओं पर अधिकार पाने का प्रमाणिक मार्ग या साधन है। यज्ञ एक वैज्ञानिक विद्या है जो 100 प्रतिशत कारगर एवं प्रामाणिक है। यज्ञ को पूरी तरह शास्त्र सम्मत एवं विधिविधान से करने पर इसके अद्भुत परिणाम प्राप्त होते हैं। यज्ञ से आसपास का वातावरण शुद्ध, पवित्र एवं दिव्य ऊर्जा से संपन्न होता है। आसपास के वातावरण में विभिन्न प्रकार की बीमारियों के कीटाणु यज्ञ की धूम और मंत्रों की ध्वनि तरंगों से नष्ट हो जाते हैं। इतना ही नहीं पर्यावरण के संतुलन एवं संतुलित वर्षा में यज्ञ का महत्वपूर्ण योगदान है। यज्ञ की उपयोगिता एवं सफलता के तीन प्रमुख आधार है। 1. मंत्रों की ध्वनि का विज्ञान।2. दिव्य जड़ी-बूटियों एवं वनस्पतियां। 3. साधक की एकाग्रता एवं मनोबल।यज्ञ को एक प्रकार का ऐसा यंत्र समझना चाहिए जिसके सभी पूर्जे ठीक-ठीक एवं उचित स्थान पर संलग्न हो। जो यज्ञ का ठीक प्रयोग जानते हैं तथा पूर्णत: एवं वर्चस्वी निश्चित रूप से होते हैं। यज्ञ की विधा एक ऐसी विद्या है जो अति प्राचीन काल से चली आ रही है। यहां तक की सृष्टि की उत्पत्ति यज्ञ का फल कही जाती है। सृष्टि की रचना से पूर्व स्वयं शक्ति अर्जित करने के लिए यज्ञ किया एवं शक्ति प्राप्त की।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें